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अध्याय 1: अर्जुनविषादयोग
इस अध्याय में, अर्जुन युद्धभूमि में अपने सगे-संबंधियों को देखकर मोहग्रस्त हो जाते हैं और युद्ध करने से मना कर देते हैं।
अध्याय 2: सांख्ययोग
भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता और कर्म के सिद्धांत का ज्ञान देते हैं, और उसे अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।
अध्याय 3: कर्मयोग
इस अध्याय में, श्रीकृष्ण कर्मयोग का महत्व समझाते हैं और बताते हैं कि कैसे अनासक्त भाव से कर्म करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
अध्याय 4: ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
श्रीकृष्ण ज्ञान की महिमा और ज्ञान-यज्ञ के बारे में बताते हैं, और यह समझाते हैं कि कैसे ज्ञान से सभी कर्म बंधन नष्ट हो जाते हैं।
अध्याय 5: कर्मसंन्यासयोग
अर्जुन के संशय को दूर करते हुए, श्रीकृष्ण कर्म-संन्यास और कर्म-योग के बीच के अंतर और श्रेष्ठता को स्पष्ट करते हैं।
अध्याय 6: आत्मसंयमयोग
इस अध्याय में ध्यानयोग की विधि, मन को वश में करने के उपाय और ध्यानयोगी की स्थिति का वर्णन किया गया है।
अध्याय 7: ज्ञानविज्ञानयोग
श्रीकृष्ण अपने विराट और सर्वव्यापी स्वरूप का ज्ञान देते हैं और बताते हैं कि सब कुछ उन्हीं से उत्पन्न होता है।
अध्याय 8: अक्षरब्रह्मयोग
यह अध्याय ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म और अधिभूत जैसे गूढ़ प्रश्नों का उत्तर देता है और मृत्यु के समय भगवान का स्मरण करने का महत्व बताता है।
अध्याय 9: राजविद्याराजगुह्ययोग
श्रीकृष्ण सबसे गोपनीय ज्ञान, राजविद्या, का वर्णन करते हैं और अपनी भक्ति के सरल मार्ग को प्रकट करते हैं।
अध्याय 10: विभूतियोग
भगवान अपनी अनंत विभूतियों का वर्णन करते हैं, जिससे अर्जुन को उनके सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान स्वरूप का बोध होता है।
अध्याय 11: विश्वरूपदर्शनयोग
अर्जुन के अनुरोध पर, श्रीकृष्ण अपना विराट, विश्वरूप दिखाते हैं, जिसे देखकर अर्जुन आश्चर्य और भय से भर जाते हैं।
अध्याय 12: भक्तियोग
इस अध्याय में सगुण और निर्गुण भक्ति के मार्गों की तुलना की गई है और भक्त के गुणों का विस्तार से वर्णन है।
अध्याय 13: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग
क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के ज्ञान का वर्णन किया गया है, तथा प्रकृति और पुरुष के भेद को समझाया गया है।
अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोग
तीन गुणों - सत्त्व, रज और तम - का विस्तार से वर्णन किया गया है और बताया गया है कि ये कैसे आत्मा को बांधते हैं।
अध्याय 15: पुरुषोत्तमयोग
संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष के माध्यम से परब्रह्म, क्षर और अक्षर पुरुष का ज्ञान दिया गया है।
अध्याय 16: दैवासुरसम्पद्विभागयोग
दैवी और आसुरी सम्पदा वाले मनुष्यों के लक्षणों और उनके परिणामों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अध्याय 17: श्रद्धात्रयविभागयोग
श्रद्धा, आहार, यज्ञ, तप और दान के तीन गुणों के आधार पर भेद बताए गए हैं।
अध्याय 18: मोक्षसंन्यासयोग
गीता का सार प्रस्तुत करते हुए, इस अध्याय में त्याग और संन्यास के वास्तविक अर्थ को समझाया गया है और मोक्ष का मार्ग दिखाया गया है।